बीते दिनों की छाँव में








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  1. जब हम हॉस्टल में रह करते थे तब कभी ये सपने में भी नही सोचते थे कि हम कभी अलग भी होंगे बस मदमस्त होकर अल्लहड़ों की तरह मौज मस्ती करते हुए जाने कब कॉलेज के बो 5 वर्ष निकल गए पता ही नहीं चला।
    लेकिन हमारे सोचने और न सोचने से क्या फर्क पड़ता है होना तो वही है जो दुनिया का दस्तूर है फिर एक दिन बो समय आ ही गया हमे अपने हॉस्टल से अपने कॉलेज से अपने जीवन से अलग होना ही पड़ा । हाँ ये बिल्कुल सही है हम वहां से अलग हुए लेकिन यादें ओर किस्से आज तक वही हैं ।
    हाँ जी बिलकुल सही है हॉस्टल में रहते हुए कभी नही सोचा की अलग होंगे लेकिन उसके बाद हमेशा यही सोचा की कैसे मिलेंगे ।
    आखिर सफलता मिल ही गई अब हम बापस अपनी उसी विंदास जिंदगी को फिर से जीने लगे हैं जिसमे न कोई चिंता न फिकर वही अल्लहड़पन वही मस्ती।

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  2. जब हम हॉस्टल में रह करते थे तब कभी ये सपने में भी नही सोचते थे कि हम कभी अलग भी होंगे बस मदमस्त होकर अल्लहड़ों की तरह मौज मस्ती करते हुए जाने कब कॉलेज के बो 5 वर्ष निकल गए पता ही नहीं चला।
    लेकिन हमारे सोचने और न सोचने से क्या फर्क पड़ता है होना तो वही है जो दुनिया का दस्तूर है फिर एक दिन बो समय आ ही गया हमे अपने हॉस्टल से अपने कॉलेज से अपने जीवन से अलग होना ही पड़ा । हाँ ये बिल्कुल सही है हम वहां से अलग हुए लेकिन यादें ओर किस्से आज तक वही हैं ।
    हाँ जी बिलकुल सही है हॉस्टल में रहते हुए कभी नही सोचा की अलग होंगे लेकिन उसके बाद हमेशा यही सोचा की कैसे मिलेंगे ।
    आखिर सफलता मिल ही गई अब हम बापस अपनी उसी विंदास जिंदगी को फिर से जीने लगे हैं जिसमे न कोई चिंता न फिकर वही अल्लहड़पन वही मस्ती।

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