पावन संकल्प के साथ हॉस्टल भाइयों ने किया पौधारोपण

पुराने दिन लौट कर तो नहीं आते मगर उनके एहसास को जिंदा रखा जा सकता है, उसको महसूस किया जा सकता है. हॉस्टल छोड़ने के बाद एक-एक करके सबका मिलना हुआ. मिलना जितना सुखद लगा उतना ही दुखद लगा उस जगह को देखकर जहाँ कभी चमन बरसता था. हॉस्टल तन्हाई में खड़ा हुआ है और कॉलेज की हरी-भरी रहने वाली दोनों बगिया भी अपने पुराने दिनों के आने का इंतजार कर रही थीं. कॉलेज बगिया की मूक पुकार को हॉस्टल के भाइयों से न केवल सुना वरन महसूस भी किया. दिल से दिल के तार जुड़े और फिर सभी ने मिलकर संकल्प लिया कि अपने कॉलेज की अपनी बगिया को फिर उसी पुराने रूप से सजाना-संवारना है जिस रूप में उसे कभी देखा था. 



पुनीत संकल्प लिया गया कि 27 अगस्त 2017 को बगिया में पौधारोपण कार्यक्रम किया जाये. छायादार, फलदार वृक्षों के पौधों को लगाकर बगिया को पुराने स्वरूप में लाया जाये. इसके साथ ही उन भाइयों की उपस्थिति को भी बनाये रखने का संकल्प लिया गया जो असमय हम सबसे बहुत-बहुत दूर चले गए हैं. ऐसे भाइयों के नाम पर एक-एक पौधा रोपकर उनकी छत्रछाया में, उनकी आत्मिक उपस्थिति में बगिया के रूप को सजाया जाये. इधर भाई लोग संकल्पित, उत्साहित, जोश में थे तो उधर सूक्ष्म रूप में विचरण करते हमारे शेष भाई भी अपनी उपस्थिति को बनाये थे. उनकी ख़ुशी को, उल्लास को प्रकृति अपनी तरह से दिखाने को व्याकुल थी.



27 अगस्त की सुबह आई. जिस ख़ुशी, उत्साह से हम सब भाई जुड़े उसी उमंग से बारिश भी आई. खूब झमाझम बारिश के साथ ग्वालियर की बरसों की प्यास बुझी. सड़कें, गलियाँ, मैदान, कॉलोनी, पार्क आदि-आदि सब पानी से भरे दिख रहे थे. हम सबको एहसास हुआ कि हम सभी का संकल्प पावन है तभी महज पौधारोपण करने की ईमानदार पहल से ही प्रकृति ने हम सबका साथ दिया. पानी, बारिश की परवाह किये बिना पूर्व निर्धारित स्थान साइंस कॉलेज में वे सभी भाई लोग पहुँचे जिनकी स्वीकृति मिल चुकी थी. जो भाई अपनी-अपनी व्यस्तताओं के चलते ग्वालियर से बाहर थे, वे भी लगातार कॉल करके, मैसेज के द्वारा, सोशल मीडिया के द्वारा अपनी उपस्थिति बनाये हुए थे. मनीष-मुकेश ने तो अपनी कार को नाव बना ही दिया था लेकिन सबकी सहभागिता को सुनिश्चित किया.



बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी. सबके मन प्रसन्न थे. बारिश जोश कम न करने के बजाय बढ़ा ही रही थी. न भीगने की चिंता, न कपड़े ख़राब होने का डर. डेढ़-दो दशक पुराने दिन याद आ गए जबकि बारिश की हलकी झड़ी लगते ही हम सभी भीगने निकल पड़ते थे. चाय-समोसे के दौर चलने लगते. कुछ ऐसा ही यहाँ भी हो रहा था. चाय-समोसे-रसगुल्ले भी आये मगर संकल्प-अभियान को आरम्भ करने के बाद ही. भीगने की परवाह से बहुत दूर सब बगिया में हुल्लड़ में, भीगने में मगन थे. चूँकि छोटे भाइयों द्वारा एक दिन पूर्व खोदे गए सभी गड्ढे पानी से भर चुके थे. ऐसे में निर्णय लिया गया कि अपने संकल्प को अधूरा नहीं छोड़ना है. कहीं ऐसी जमीन पर जो पानी से न भरी हो, उसमें गड्ढे बना कर पौधारोपण का शुभारम्भ किया ही जाये. बस ब्रजराज, जीतेन्द्र, पंकज, अरविन्द आदि ने भीगते-भीगते ही बगिया में विवेकानंद जी की प्रतिमा के आसपास, इधर-उधर सूखी जमीन तलाशी गई; ऐसी जगह देखी गई, जहाँ पानी ज्यादा न भरा हो. कुल चार गड्ढे खोदे गए. पुनीत संकल्प के लिए, दिवंगत हो चुके भाइयों के नाम पर भानु भाईसाहब, अवनीश, कुमारेन्द्र, चंद्रपाल, सतेन्द्र, अमरेन्द्र सहित सभी भाइयों ने चार पौधे लगाये. इसी के साथ निर्णय लिया गया कि एक-दो दिन बाद बारिश के थमने और जमीन के सही होने पर शेष 36 पौधे भी रोप दिए जायेंगे. 




दो-तीन दिन बाद बगिया की जमीन इस लायक हुई कि पौधों को लगाया जा सके. उत्साहित, संकल्पित छोटे भाई 30 अगस्त को फिर कॉलेज पहुंचे. इस बार उनको कुछ वरिष्ठजनों का भी साथ मिला जो बहुत पहले कॉलेज के विद्यार्थी रहे थे. उनके साथ आने से और उसी युवा-उत्साह से पौधारोपण करने से हम सभी का जोश और बढ़ गया. पंकज, ब्रजराज, जीतेंद्र को हेमंत शर्मा, रिशु तोमर और पार्षद सतीश यादव का भी सकारात्मक सहयोग मिला. बगिया को सजाने-संवारने, हरी-भरी बनाने और अपने भाइयों की उपस्थिति को जीवंत बनाने के लिए पहले चरण में कुल चालीस पौधे लगाये गए. 





इस बीच पौधों की सुरक्षा के लिए ट्री-गार्ड भी बनवा लिए गए. जिनको चंद्रपाल, ब्रजराज की निगरानी में लगवाया गया. सुखद स्थिति ये रही कि कॉलेज के कर्मियों अतुल और रवि का सहयोग इस कार्य के लिए मिला. यह इस अभियान की ईमानदार पहल ही है और सभी भाइयों की सक्रियता, कॉलेज की बगिया को गोद लेने के अनुरोध को कॉलेज के प्राचार्य ने सहजता से सहर्ष स्वीकार कर लिया और अनुमति दे दी. विश्वास है कि जल्द ही हम सबकी बगिया फिर अपने पुराने रंग में दिखाई देगी. 



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